♥ जश्न ♥
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एक अहम फैसले का दिन था। पुरा अदालत भीड़ से खचाखच भरी थी।
रामदीन सामने के कटघरे में खड़े अपने दामाद राजेश की तरफ ऊँगली दिखाकर चिल्लाए जा रहा था।
"जज साहब, इस पापी को फाँसी दे दो। इस दरिन्दे को जीने का कोई हक नहीं।"
"ऑर्डर ऑर्डर" जज साहब ने टेबुल ठोकी।
"तमाम सबुत और गवाहों को मद्देनजर रखते हुए यह साबित होता है कि रामदीन की बेटी गंगा की स्वभाविक मौत हुई है इसलिये ये अदालत माननीय राजेश को बाईज्जत बरी करती है।"
पुरे अदालत में जश्न का माहौल बन गया।
दीपावली और होली का आनंद फैल गया और रामदीन के गालों पर आँशु के कुछ बुँदे गिरते गिरते ठिठक गये, निःशब्द