♥ बिटिया ♥
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साहुकार : रामदीन, तुमने अपनी सारी जमीन बेच दी, अपने आगे के भविष्य के लिए कुछ तो बचाकर रख लेते।
रामदीन : अपना क्या है सेठ जी, किसी तरह जिन्दगी कट जाएगी मगर अपनी बिटिया को किसी ऐरे गैरे के यहाँ तो नहीं ना ब्याह सकता!
साहुकार : हाँ, ये तो ठीक है। पुरे गाँव में इस शादी की चर्चा हो रही है। हो भी क्यों पहली बार किसी के यहाँ डॉक्टर की बारात आ रही है।
रामदीन : अच्छा अब चलता हुँ,जल्दी से ये रूपये लड़के वालों तक पहुँचाना है और बहुत सारी तैयारी भी करनी है।
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शादी का दिन, पुरा गाँव बारातियों के स्वागत में लगी थी। छोटे छोटे बल्बों से पुरा घर जगमगा रहा था। शहनाईयों के आवाज से पुरा माहौल गुँज रहा था।
अंतत: वो शुभ घड़ी भी आ गई।
पंडीजी मंत्रोच्चारण करते हुए कहा "कन्या को मंडप में लाईए"
"जी, अभी आई" रामदीन की पत्नी कहते हुए अंदर गई।
एक मिनट, दो मिनट, आधा घंटा निकल गया।
"जल्दी किजिए जजमान, शुभ घड़ी निकलती जा रही है" पंडीजी फिर से दोहराए।
रामदीन के कान में एक महिला ने आकर धीरे से कहा " आपको श्रीमति जी ने अंदर बुलाया है"
"मैं अभी देखकर आता हुँ पंडीजी" कहते हुए रामदीन उठकर अंदर चला गया।
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"अरे भाग्यवान, किस बात की देरी हो रही है वहाँ सबलोग... . . ." कहते कहते रामदीन अपनी पत्नी का रोआँसा चेहरा देखकर ठिठक गया।
रामदीन की पत्नी ने एक चिट्ठा रामदीन के हाथ में पकड़ा दिया।
"हमें माफ करना पापा, जबतक ये पत्र आपके हाथ में होगा तबतक मैं आपके दुनियाँ से बहुत दुर जा चुकी हुँगी।
मै जानती हुँ आप इस वक्त बहुत दुखी होगें मगर मेरे पास कोई दूसरा रास्ता भी ना था। मैं जहाँ भी रहुँगी आपके प्यार को नहीं भुल पाऊँगी मगर इस बात का दुख रहेगा कि आपने कभी भी मुझे समझने की कोशिश नहीं की। मैं अपनी एक खुशी के लिए आपको पुरी जिन्दगी दुखी नहीं देख सकती। . . . .
आपकी बिटिया"
रामदीन : नि:शब्द